Akbar-Birbal Ki Kahani | पहेलियां और कहानियों के शौकीन बादशाह अकबरअपने न्याय प्रिय शासन के लिए भी मशहूर थे. बादशाह अकबर के दरबार में कई मंत्री गण थे परंतु उनके सबसे प्रिय मंत्री थे बीरबल, क्योंकि वह हमेशा उनके कठिन से कठिन पहेलियां को बूझ लेते थे. बादशाह अकबर के दरबारियों में बीरबल (birbal stories) एक ऐसे दरबारी थे कि अपनी समझदारी से सही गलत को जान लेते थे. जब कभी बादशाह अकबर न्याय-अन्याय और सच-झूठ को नही समझ पाते, तो वे बीरबल की मदद लिया करते और बीरबल अपनी सूझबूझ से नही फैसला सुनाया करते थे ताकि किसी के साथ अन्याय नही हो पाएं.
ऐसा ही एक बार हुआ जब अकबर बादशाह समझ नहीं पाए कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ. तो चलिए आज के हिंदी महल के इस अंक में जानते हैं अकबर और बीरबल (Akbar Birbal ki Kahani) से जुड़ा एक वाक्या जिसमें बादशाह अकबर ने नहीं जबकि बीरबल ने न्यायपूर्ण फैसला सुनाया था…
Akbar-Birbal Ki Kahani | “बीरबल की खिचड़ी” का मुहावरा
एक बार बादशाह अकबर के दरबार में एक औरत एक आदमी को साथ लेकर आई और अपना दुखड़ा रोने लगी कि – हुजूर मैं लूट गई, इस आदमी ने मेरे सारे गहने लूट लिया है, अब आप ही न्याय कीजिए. अकबर ने उस आदमी से पूछा कि – तुम अपनी सफाई में कुछ कहना चाहते हो ?. इस पर उस आदमी ने कहा ” हुजूर ! मैं बेकसूर हूं, मैंने कोई भी अपराध नहीं किया है. मैं तो एक परदेसी हूं और आपसे मिलने की इच्छा थी. तो इस औरत ने मुझे आपसे मिलवाने का वादा किया और यहां लाकर मुझे ही फंसाने की कोशिश कर रही हैं.” तब उस औरत ने चीख चीख कर बोलने लगी कि – हुजूर ! यह आदमी झूठ बोल रहा है. इसी ने मेरे सारे जेवर को लूटा है. दोनों की बातों को सुनने के बाद बादशाह अकबर तय नहीं कर पा रहे थे कि फैसला किसके हक में सुनाएं तब उन्होंने फैसले के लिए बीरबल को आगे कर दिया.
बीरबल ने दोनों पक्षों की बातों को गंभीरता से सुनने के बाद उस औरत से बोले – तुम्हारे जो गहने लुटे गए हैं उनकी कीमत क्या होगी. उस औरत ने बताया कि उस गहने की कीमत पांच हजार है. बीरबल ने उस औरत को गौर से देखा और फिर उसने एक दरबारी को बुलाकर उनके कान में कहा “शाही खजाने से पांच हजार रुपए लाकर चुपचाप उस परदेशी को दे दो और कहना कि जब बीरबल उसे रुपये देने को कहे तो उस औरत को दे दें फिर दरबारी ने वैसा ही किया. कुछ देर सोचने के बाद बीरबल ने बोला ” परदेशी ! मुझे यकीन है कि तुमने इस औरत के जेवर लुटे है इसलिए तुम उसके जेवरों की कीमत पांच हजार अदा कर दो.
परदेशी ने बीरबल के द्वारा दिलवाए वह पांच हजार रुपए उस औरत को दे दिए और फिर यह औरत रुपये लेकर चली गई. उस औरत के जाने के बाद बीरबल ने उस परदेशी से कहा – जाओ अब तुम उस औरत से पांच हजार रुपये लूटकर आओ ” बीरबल के इन आदेश का पालन करते हुए वह आदमी भी उस औरत के पीछे चला गया किन्तु बीरबल ने अपने दो सिपाही को उन पर गुपचुप नज़र रखने के लिए पीछे भेज दिया. उस औरत को परदेशी ने रास्ते में पकड़ लिया और उसके पास रखे रुपये को छिनने लगा बहुत कोशिश करने के बाद भी वह आदमी उस औरत से रुपये छीन नहीं पाया तब उस औरत ने उसका हाथ पकड़ कर कहा ” चल दरबार में , तेरे को जेवर लूटने की सजा तो मिल गई अब तुझे रुपये लूटने की कोशिश करने के अपराध की सजा दिलवाऊंगी “.
परदेशी को लेकर वह औरत दरबार मे आई और कहने लगी कि अब यह आदमी मेरे रुपये लूटने की कोशिश कर रहा था. तब बीरबल ने उस औरत से पूछा कि ” क्या इसने तुम्हारे रुपये लूट लिया? उस औरत ने बताया कि उसने रुपये लूटने ही नहीं दिया. बीरबल ने उन सिपाहियों की ओर देखा जिनको उन्होंने उन दोनों के पीछे लगाया था जिन्होंने बताया कि यह औरत बहादुरी से उस आदमी का मुकाबला करने लगी और उसने रुपये लूटने नहीं दिया.अब बीरबल उस औरत की ओर देखा और बोले कि ” तुमने अब तक सिर्फ झूठ ही बोला है, जो आदमी तुमसे रुपये लूट नहीं सका वह तुम्हारे जेवर कैसे लूट सकता है ? ” बीरबल ने सिपाहियों को उस औरत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया तब वह औरत डर गई और अपना अपराध को स्वीकार किया. बीरबल ने उस औरत से रुपये को लेकर शाही खजाने में भिजवा दिया और उस औरत को कारागार में डाल दिया और परदेशी को इज्ज़त के साथ वापस भेज दिया.
बादशाह अकबर बीरबल के दिए गए इस न्यायपूर्ण फैसले से बहुत खुश हुए.