Akbar-Birbal Ki Kahani | बादशाह अकबर तो वैसे तो बहुत न्यायप्रिय शासक थे वे कभी भी किसी के साथ अन्याय होने नहीं देते थे लेकिन कभी कभी अनजाने उनसे गलती हो जाया करती और भूल से गलत फैसला सुना दिया करते थे. पहेलियां और कहानियों को सुनने और सुनाने के बहुत ही शौकीन थे बादशाह अकबर. बादशाह अकबर हमेशा अपने साथ बीरबल को साथ रखा करते थे, किन कभी-कभी इन दोनों के बीच में नोक झोंक भी हो जाती. इनके नोक झोंक की एक प्रसिद्ध कथा है जो अब तो इतनी ज्यादा मशहूर हो गई है कि लोग उसके मुहावरे तक हर बात में प्रयोग किया करते हैं- ” बीरबल की खिचड़ी”. इस मुहावरे का अर्थ है कि किसी भी आसान काम को बहुत मुश्किल बताना या फिर किसी काम को करने में बहुत अधिक समय लगाना.
एक बार बादशाह अकबर ने एक गलत फैसला सुना दिया. उनकी इस गलती को बीरबल ने एक नए अंदाज में समझाया और बादशाह अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ. ऐसा ही एक प्रसंग हैं जिसमें बीरबल ने अपने अंदाज में बादशाह अकबर को उनके किए फैसले को गलत साबित किया. तो चलिए आज के हिंदी महल के इस अंक में जानते हैं अकबर और बीरबल (Akbar Birbal ki Kahani) के बीच की एक रोचक कहानी. और जानते हैं, बीरबल की खिचड़ी का मुहावरा कैसे बना ? जानें इसके पीछे की कहानी.
Akbar-Birbal Ki Kahani | “बीरबल की खिचड़ी” का मुहावरा
सर्दियों का मौसम था तो इसी सर्दी के मौसम में एक बार बादशाह अकबर और बीरबल यमुना किनारे टहल रहे थे कि अचानक अकबर ने बीरबल से कहा – “इस कड़ाके की ठंड में सारी रात कोई नदी में खड़ा होकर बीता सकता है” तो इस पर बीरबल ने कहा – ” हुजूर ! कोई न कोई तो अवश्य ऐसा मिल जाएगा “. बादशाह अकबर ने पुनः पूछा – “यह बात तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो” इस बात पर बीरबल ने कहा – ” हुजूर , धन में बहुत ताकत होती हैं और कोई नही गरीब धन के लालच में यह कार्य कर सकता है “.
बीरबल की बात को गलत साबित करने के उद्देश्य से अकबर बादशाह ने दरबार में यह घोषणा करवाया की जो कोई भी यमुना नदी में रात भर खड़ा रहेगा तो उसको पांच सौ अशर्फियां इनाम में दिया जाएगा. इस घोषणा से बीरबल समझ चुके थे कि आखिर क्यों बादशाह अकबर ने यह घोषणा किया है, फिर वे धोबियों की बस्ती में गया और एक धोबी को इस काम के लिए तैयार कर लिया. धोबी दूसरे दिन बादशाह अकबर के सामने उपस्थित हुआ और उनसे बोला कि – “आलमपनाह, मैं आपकी शर्त को स्वीकार करता हूँ ” .
तब बादशाह अकबर ने सारी व्यवस्था करा दी फिर रात को धोबी को नदी किनारे लाया गया और वह धोबी नदी में उतर गया अकबर वहां पर दो पहरेदार को खड़ा करके लौट आएं. अगले दिन धोबी को दरबार में प्रस्तुत किया गया तो धोबी ने अपने हक के इनाम की मांग करने लगा तब अकबर ने दोनों पहरेदारों से पूछा तो उन्होंने भी रात भर नदी में धोबी के खड़े होने की पुष्टि कर दी. तब अकबर ने धोबी की प्रशंसा किया फिर उनसे पूछा कि – ” तुम इतनी ठंड में रात भर नदी में खड़े रहें, तुमको ठंडी नहीं लगी?” तो इस पर उस धोबी ने जवाब दिया कि ” हुजूर राजमहल के बुर्ज पर जलती हुई लालटेन को मैं रात भर देखता रहा ” धोबी के इस बात को सुनकर बादशाह अकबर ने कहा – “ओह ! इसका मतलब कि तुम लालटेन की गर्मी को पाया इसलिए तुम रात भर नदी में खड़े हो पाए, अब तुम इनाम के हकदार नही हो तुम जा सकते हो ” बेचारा धोबी बादशाह अकबर के सामने क्या बोलता… चुपचाप दरबार से चला गया. दरबार में वहां बीरबल भी बैठा था उसे यह बात बहुत ही बुरी लगी उन्होंने मन ही मन तय किया कि धोबी को उसका हक दिलाकर रहेंगे.
अगले दिन बीरबल जब दरबार में नहीं आया तो बादशाह अकबर ने एक सिपाही को भेजकर उनको बुलवाया. बीरबल ने उस सिपाही को यह कहकर वापस भेज दिया कि वे खिचड़ी पका रहें हैं जब पक जाएगी तो उसे खाकर दरबार आएगे और यही संदेश को सिपाही ने अकबर को सुना दिया लेकिन जब बहुत देर तक बीरबल दरबार नहीं आएं तो अकबर बादशाह ने पुनः सिपाही भेजे तब भी बीरबल ने वहीं जवाब भिजवाया. कई बार सिपाही को भेजने के बाद जब एक ही जवाब आता रहा तब बादशाह अकबर ने खुद बीरबल के घर जाने को सोचा.
जब अकबर बादशाह वहां पंहुचे तो देखा कि दस फीट ऊंचे तीन बांसों पर ऊपर एक हांडी लटकी हुई थी और नीचे आग जल रही थीं. यह देखकर अकबर ने पूछा ” बीरबल यह क्या तमाशा कर रहे हो ?” इस सवाल पर बीरबल ने जवाब दिया कि ” जहांपनाह खिचड़ी पका रहा हूं ” बीरबल के इस बातें को सुनकर अकबर नाराजगी अंदाज में बोले कि – यह कौन सा तरीका है खिचड़ी पकाने का, दाल चावल की हांडी को तुमने दस फीट ऊपर रखा है तो आग की गर्मी उस हांडी तक कैसे पहुंचेगी ?” बीरबल इसी मौके के ताक में थे उन्होंने फौरन जवाब दिया कि – ” क्यों नहीं पहुँच सकती हुजूर, जब महल के बुर्ज पर जलती लालटेन की गर्मी नदी में खड़े एक आदमी तक पहुँच सकती हैं तो यह हांडी तो आग से सिर्फ दस फीट ही दूर है “.
बादशाह अकबर बीरबल की बात का आशय समझ गए उन्होंने धोबी को फौरन दरबार में बुलवाया और उसे उसके हक का इनाम दिया.