Khali Haath | हिंदी में एक कहावत है बुढ़ापा और बचपन एक समान यानी की बच्चे और बुजुर्ग एक जैसे ही सोच रखते हैं एक जैसे ही उम्मीद रखते हैं. बच्चा जब छोटा होता है तो वह किसी वस्तु को पाने के लिए अपने पिता से जिद करता है और उम्मीद करता है तो वही जब वह पिता बुजुर्ग हो जाता है तो वही चाहत वह अपने उस बच्चों से रखता है जिसे की हर इच्छा को समझकर पुरा करता है लेकिन क्या बेटा कभी अपने बुजुर्ग पिता की इच्छा को समझ कर पूरा कर पता है. देर से सही बेटा अगर समझदार व्यक्ति है तो वो एक दिन अपने पिता की इच्छा को जरूर पूरा कर देता है जैसे कि उसके पिता ने किया करते थे. आज हिंदी महल एक ऐसी कहानी लेकर आया है जिसमें एक पिता और पुत्र की बहुत ही खूबसूरत रिश्ते को दर्शाया गया है.
रोजाना की तरह आज भी राजीव शाम को ऑफिस से घर लौटने पर घर के बरामदे के बाहर बाइक खड़ी की. बरामदे पर कुर्सी पर बैठे उनके बाबूजी आज भी उसे एकटक नजर से देख रहे थे राजीव के एक हाथ में बैक था और दूसरा खाली. राजीव वही बरामदे में उनके पास ही खाली पड़ी कुर्सी पर बैठ गया और पूछा – पापा कैसे हो, सब ठीक है ना? पापा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया हां बेटा! मैं ठीक हूं और तुम ? यह सवाल पर राजीव ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया हां पापा मैं भी ठीक हूँ. राजीव की मां की पिछले दो साल पहले देहांत हो चुका था और तब से ही यह काम चल रहा था जब शाम ऑफिस से राजीव लौटता तो बाबूजी उसे यूं ही बरामदे पर रखी कुर्सी पर बैठे मिलने ऐसा लगता है जैसे वह राजीव की प्रतीक्षा कर रहे हो और राजीव को एक मासूम बच्चे की तरह गेट खुलने की ही प्रतीक्षा करते हुए मिलते इसके बाद वह बाहर घूमने चले जाते और वह अपने कामों में व्यस्त हो जाते.
यह सिलसिला यूं ही चलता रहा न जाने एक दिन राजीव को ऐसा लगा जैसे बाबूजी उसकी हाथों को देखते आखिर क्या देखते है उसकी समझ में नहीं आ सका. राजीव से बड़ी उसकी एक बहन थी जिसका नाम रागिनी था जो टीचर की नौकरी करती थी और नौकरी और घर गृहस्थी में व्यस्त होने के कारण वह इस बार रक्षाबंधन में एक दिन ही रुकने का प्रोग्राम बना कर राजीव को राखी बांधने घर आई. राजीव की पत्नी प्रीति दोनों बच्चों को लेकर दोपहर में रागिनी से राखी बंधवाकर अपने भाई को राखी बांधने अपनी मायके चली गई. घर पर केवल बाबूजी राजीव और उसकी दीदी ही रह गए बाबूजी ने रात में खाना खाकर जल्दी सो चले गए राजीव और उसकी दीदी बिस्तर पर बैठ कर देर रात तक बातें करते रहे.
रागिनी बचपन को याद करते हुए राजीव बताने लगी कि कैसे जब बाबूजी शाम को ड्यूटी से वापस आते थे तो हम लोगों के खाने के लिए कुछ ना कुछ जरूर लाते थे और हम दरवाजे पर बैठकर उनका बड़ी ही बेसब्री से इंतजार किया करते थे. घर में आते ही उनके हाथों को ललचाए नजरों से देखा करते थे उनके पैरों से लिपट जाया करते कभी-कभी बाबूजी खाने की चीज अपने बैग में छुपा लेते थे तो हम बड़े उदास हो के मुंह लटका के बैठ जाते हैं तब मुस्कुराते हुए बाबूजी बैग में से खाने की चीज निकलते थे तो हमारे चेहरे कितना खिल उठता था. तब समय के अनुसार हम बच्चों के लिए उस बैग में रोज कुछ ना कुछ नया होता फिर मम्मी हम दोनों भाई-बहनों को बराबर में बिठाकर बड़े प्यार से खिलाती कुछ बचता तो मां बाबूजी को खाने देता वरना हम बच्चों के खिले चेहरे और मन देखकर ही वह दोनों संतुष्ट हो जाते थे. कभी-कभी किसी कारण से बाबूजी को आने में देर हो जाती या उनके हाथ खाली होते हैं तो लगता जैसा पूरा घर उदास हो गया हो. रागिनी बचपन की यादों को बता रही थी और राजीव के दिमाग में बाबूजी के खाली हाथों में कुछ ढूंढना समझ में आने लगा.
अपनी दीदी से बचपन की बातों को सुनते हुए अचानक राजीव को याद आ गया की मम्मी के जाने के बाद घर में विशेष कुछ बनता ना था क्योंकि पत्नी प्रीति भी कामकाजी होने कारण उस किचन में जाने का समय ही कम मिलता था यही कारण था की शादी के बाद जब तक मम्मी थी तब तक बाबूजी और उसके खाने पीने की विशेष चीजों की कभी कमी ना रहीं. वैसे तो घर में खाने पीने के लिए सब आसानी से उपलब्ध होता था पत्नी का व्यवहार भी पिता के साथ अच्छा ही था. राजीव यह सोच के बहुत ही बेचैन हो गया कि मुझ से इतना बड़ा अपराध कैसे हो सकता है क्यों मैं भूल गया कि बच्चे बूढ़े एक समान होते हैं पिछले वर्षों की व्यवस्था से मुझे और प्रीति को बच्चे और बाबूजी की छोटी-मोटी इच्छा के बारे में कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिला. बच्चों के साथ-साथ बुजुर्गों को भी लगता है कि जब कोई बाहर से आता है तो कुछ ना कुछ खाने के लिए विशेष मिलेगा ही मिलेगा.
राजीव ने अपनी यह मन की बात अपनी दीदी रागिनी को बताई जिसको सुनकर रागिनी के भी अपने भाई के साथ आंसू बहने लगे तब राजीव ने मन ही मन कुछ विचार और प्रण कर लिया और दूसरे दिन जब वह ऑफिस से लौटा तो उसके बाबूजी आज भी उसे यथावत उसी स्थान और उसी मुद्रा में बैठे हुए मिले लेकिन आज राजीव ने गाड़ी की डिग्गी में से एक हाथ से बैग और दूसरे हाथ से गरम जलेबी का लिफाफा निकालकर अपने बाबूजी की और बढ़ाया. बैग के साथ दूसरे हाथ में लिफाफा देखकर बाबूजी की आंखों में चमक आ गई लिफाफा उसके हाथ में देखकर राजीव उसके बाजू में रखी कुर्सी पर बैठ गया उन्होंने बड़े उत्सुकता से लिफाफा खोला और जलेबी देखकर बाल सुलभ मुस्कुराहट उनके चेहरे पर फैल गई.
अस्वीकरण (Disclaimer) : यह कहानी एक काल्पनिक रचना है. इसमें चित्रित सभी नाम, पात्र, स्थान और घटनाएँ लेखक की कल्पना की उपज हैं, और किसी भी जीवित या मृत वास्तविक व्यक्ति से इसकी समानता केवल संयोग मात्र है.