Fasting is a Boon | उपवास हमारे अच्छे स्वास्थ्य एवं सेहत के लिए किसी वरदान (upvas ek vardan hai) से कम नहीं है. उपवास न ही केवल हमारे शरीर के अंदर के अंगों का उपचार करता है बल्कि मानसिक तनाव से भी हमें छुटकारा दिलाता है. प्राचीन काल में उपवास को बहुत महत्व दिया जाता था. उपवास को एक सरल और मुफ्त उपचार के रूप में जाना जाता था. जैसे-जैसे समय बदला मनुष्य का खानपान का तरीका बदल गया.
सारे दिन कुछ न कुछ खाते रहना भी तभी तक अच्छा लगता है जब पाचन-क्रिया ठीक कार्य कर रही हो. यदि भोजन को पचाने वाली आंतों (intestines) पर ज्यादा और गरिष्ठ भोजन करके अधिक भार डाल दिया जाए तो वे भोजन को ठीक से पचा नहीं पाएंगी और बिना पचा भोजन आंतों में अटका रह जाएगा. पाचन क्रिया भी ठप्प पड़ जाएगी. अतः शरीर को स्वस्थ रखने के लिए तथा आंतों को विश्राम देने के लिए सप्ताह में एक दिन अवश्य ऐसा चुनें जिस दिन उपवास किया जा सके.
उपवास आधे दिन का करें या पूरे दिन का, पर करें अवश्य. जब कोई व्यक्ति बीमार होता है, तो स्वयं डॉक्टर भी भोजन न लेने की सलाह देते हैं. बीमारी में एक तो शरीर वैसे ही कमजोर पड़ जाता है, जिसकी वजह से पाचन-क्रिया स्वयं ही कमज़ोर पड़ जाती है. ऐसे में एक बीमारी के ही अनेक रूप हो जाते हैं और वे किसी न किसी रूप में उभरकर शरीर को क्षति पहुंचाती हैं. इस तथ्य में बिल्कुल भी सन्देह नहीं है कि कई पेट के रोग गात्र एक-दो बार के उपवास से ठीक हो जाते हैं.
पेट ही सारी बीमारियों की जड़ है. पेट की खराबी से ही कब्ज (Constipation), वात रोग (Arthritis), सिरदर्द, जुकाम, बलगम (Mucus) आदि अनेक रोग शरीर में घर बना लेते हैं. उपवास-काल में चूंकि शरीर के पाचन यंत्रों को अपना तो नित्य का कार्य रहता नहीं, अतः उन कारणों को जिनसे रोग हो जाते हैं, जिन्हें शरीर के विजातीय पदार्थ कहा जाता है, तो धीरे-धीरे नष्ट करना (पचाना) आरम्भ कर देते हैं। फलस्वरूप शरीर के सभी या अधिकांश विजातीय (alien) तत्व उपवास की भेंट चढ़ जाते हैं और शरीर पूरी तरह स्वच्छ, निर्मल और स्फूर्तिवान बन जाता है. अतिरिक्त काम का बोझा न पड़ने से और समय से ही विश्राम पा लेने से शरीर के पाचन संस्थानों की कार्यक्षमता बढ़ जाती है.

अब यह प्रश्न उठता है कि कितने दिनों तक उपवास किया जाए; ताकि शरीर रोगमुक्त होकर स्वस्थता प्राप्त कर सके. इसके लिये या तो किसी योग्य और अनुभवी प्राकृतिक चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए या यदि स्वयं में इस बात की परख हो कि शरीर के विकारों की गहराई परख कर निर्णय लिया जा सके तो इतने दिन का उपवास उचित रहेगा, ऐसा आप स्वयं भी महसूस कर सकते हैं. जब उपवास करने से धीरे-धीरे आपका शरीर कमजोरी और थकावट कम महसूस करे और शरीर हल्का-फुल्का तथा चुस्ती-फुर्ती का संचार महसूस होने लगे तो उपवास धीरे-धीरे घटाकर बन्द कर दें. ध्यान रखें कि उपवास तोड़ने के फौरन बाद भोजन न लें. पहले थोड़ा रसाहार (फलों का रस, शर्बत, दूध, नींबू की शिकंजी आदि) लें, बाद में हल्का और सुपाच्य भोजन लें। इससे आंतों पर एकदम जोर नहीं पड़ेगा तले हुए पदार्थ तो कम से कम उस दिन न लें.
What to Eat During Fasting | उपवास में क्या लें?
उपवास के दिनों भोजन (उपवास के खाद्य पदार्थ जो गरिष्ठ होते हैं) बिल्कुल न लें. पानी या नींबू की शिकंजी, नमक मिला हुआ मट्ठा आदि लें. जब भी भूख अनुभव हो, यही पदार्थ लें. इससे बार-बार लघुशंका की हाजत होगी और इसके साथ विजातीय पदार्थ द्रव्य रूप में बाहर निकलेंगे. एक महत्वपूर्ण बात और यह है कि उपवास के समय एनिमा अवश्य लें. एनिमा से आंतों में जमा पुराना, सड़ा-गला भोजन धुलकर निकल जाएगा. एनिमा का पानी हल्का गुनगुना लें। इसमें नींबू और एक चुटकी नमक डाल दें. एनिमा लेने कि विधि हम एनिमा वाले अध्याय में दे चुके हैं, उसी के अनुसार लें. उपवास के समय भी आप बैठे न रहें. अपना नियमित कार्य अवश्य करें. इससे आंतें सुचारू रूप से चलती हुई रुके हुए खाद्य पदार्थों को पचाने में लगी रहेंगी.
स्नान करते समय पेट की नाभि से नीचे खुरदुरे गीले कपड़े से धीरे-धीरे रगड़ें या सीधा कटि-स्नान लें. इससे पेट की आंतों की दीवारों पर चिपका खाना दीवारों से निकलकर घुलकर जाएगा. पूरा विश्राम लें और पूरी नींद शुरू में एक दिन का उपवास रखना चाहिए. यदि शरीर काफी, भारीपन, आलस्य, उदासी, बेचैनी से भरा हो तो दो या तीन दिन तक उपवास किया जा सकता है. दो या तीन दिन के उपवास के अन्तिम काल में काम की मात्रा थोड़ी करके विश्राम की मात्रा बढ़ा दें. उपवास तोड़ने और भोजन फिर से आरम्भ करने में विशेष सावधानी
बरतें। जिस प्रकार सारे दिन निष्क्रिय पड़े रहने से भी शरीर थक जाता है और कमजोरी महसूस करने लगता है, ठीक उसी प्रकार जब शरीर के पाचन संस्थान विजातीय पदार्थों को नष्ट कर (पचाकर) पाचन सम्बन्धी अन्य कार्य न होने पर खाली रहेंगे तो एक बार तो उनमें भी आसक्तता आ जाएगी. उसके बाद उपवास तोड़ने तक यदि उन पर एकदम भारी भोजन का बोझ लाद दिया जाए तो वे उसे ढंग से पचाने में असमर्थ होंगे. अतः उपवास तोड़ते वक्त आरम्भ में फलों का रस या नींबू का शर्बत, ठण्डा दूध आदि लें. फिर कुछ देर बाद पतला दलिया, खिचड़ी आदि लें. इस प्रकार धीरे-धीरे भोजन पर आएं; ताकि शरीर के पाचन संस्थान अपने को पुनः पूर्व के कार्य के अनुसार ढाल पाने में समर्थ हो सकें.
Who should not do Fasting | उपवास किसे नहीं करना चाहिए
उपवास बीमार व्यक्ति को नहीं करना चाहिए. जब तक डॉक्टर भोजन करने की सलाह न दें. क्षयरोगी, कैंसर-रोगी तथा गर्भवती महिलाओं को उपवास नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन लोगों में उपवास का भार सहने की क्षमता नहीं होती. कैंसर-रोगी वो तो अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए, गर्भवती महिलाओं को गर्भ की संर गन के विलास के लिए तथा क्षयरोगी को शरीर की आन्तरिक निरन्तर घटती आसक्तता की क्षति-पूर्ति करने के लिए भोजन की अतिरिक्त आवश्यकता होती है.
Benefits of Fasting | उपवास के लाभ
उपवास वजन घटाने (weight loss) और मोटापा दूर करने का सबसे अचूक इलाज है. बेडौल शरीर कुछ ही दिनों में अपने सही अनुपात में आ जाता है. वजन घटाने के लिए कम से कम दो दिन का उपवास रखें. पहले कुछ भी न खायें. केवल रसाहार पर रहें. बाद में एक समय भोजन करें, वह भी हल्का, सुपाच्य भोजन होना चाहिए. 15-20 दिन तक इसी क्रम को जारी रखें, अवश्य लाभ होगा. उपवास से आंतों की कार्यक्षमता बढ़ती है और वे नियमित रूप से अपना कार्य करती हैं. उपवास शरीर की सारी गन्दगी को बाहर निकाल फैंकता है और शरीर को सभी पेट के रोगों के कारण उत्पन्न हुए रोगों से छुटकारा दिलाता है. अतः स्वस्थ और नीरोग शरीर के लिए उपवास एक वरदान है. इससे शरीर के विकार दूर होते हैं तथा शरीर कांतिवान, सुन्दर और सुडौल बनता है. अतः सप्ताह में एक बार उपवास का नियम अवश्य बनाएं और दीर्घ समय तक नीरोग और स्वस्थ रहें.