Akbar-Birbal Ki Kahani | बादशाह अकबर और बीरबल की कहानी बहुत ही मशहूर है. बादशाह अकबर को पहेलियां सुलझाने और लोगों से पूछने का बहुत ही शौक था. बादशाह अकबर अपने दरबार में अपने मंत्रियों और बाकी प्रजा जनों से हमेशा कोई ना कोई पहेलियां पूछा करते और उनकी कोशिश होती थी कि उस पहेली को उनके अलावा कोई ना सुलझा सके परंतु बीरबल उन्हें कभी भी इस विषय में जितने नहीं देते थे.
अकबर बीरबल की कहानी लोगों में बहुत ही प्रचलित है. आज के हिंदी महल के इस अंक में हम जानेंगे एक ऐसे ही एक कहानी को. बादशाह अकबर की बेगम की इच्छा थी कि उनका भाई दरबार में दीवान पद को पाएं जो कि यह पद बीरबल की थी इसके लिए वह बादशाह को जिद करती साथ ही बादशाह अकबर के साले भी नया नया पैतरा आजमाते बीरबल को हटाने के लिए फिर भी उनको मात ही मिलती ऐसे ही एक बार बादशाह अकबर के साले साहब ने जिद पकड़ लिया कि उनको दीवान पद चाहिए तब बादशाह अकबर ने ऐसी युक्ति निकाली की साले साहब को सिर झुकाना पड़ा तो चलिए जानते हैं क्या थी वो युक्ति.
Akbar-Birbal Ki Kahani – Joru ka Bhai | अकबर और बीरबल की कहानी – जोरू का भाई.
बादशाह अकबर के साले साहब अक्सर बीरबल से मात खाने के बाद भी उनकी जगह लेने की कोशिश किया करते थे और दीवान बनने का सपना पूरा करने के लिए अपनी बहन को कहा करते और उनकी बहन अपने पति बादशाह अकबर को कहती लेकिन जोरू का भाई होने के बावजूद बादशाह अकबर हर बार उनका एक नया इम्तिहान लेते रहते और एक बार जब उनके साले ने पुनः स्वंय को दीवान बनाने के लिए कहा तो बादशाह अकबर ने उनको एक कोयले का टुकड़ा देकर कहा कि – इस कोयले के टुकड़े को अगर तीन दिन के भीतर दस हजार में बेच दोगें तो अवश्य मैं तुमको दीवान नियुक्त कर दुंगा.
इस शर्त को सुनकर बादशाह अकबर के साले मायूस होकर कोयले के टुकड़े को देखा और नाराजगी अंदाज़ में बोला कि ” हुजूर यह नाइंसाफी है, आप बीरबल को अपने से दूर करना नहीं चाहते इसी कारण आप मुझे ऐसा काम सौप रहे हैं जो असंभव है भला इस कोयले के टुकड़े के दस हजार कौन देगा ” इस पर बादशाह अकबर ने कहा – कोई बात नहीं तुम कोयले के टुकड़े को मुझे वापस कर दो जब उनके साले ने कोयले को टुकड़े को वापस किया तब तक बीरबल भी दरबार मे आ गए तब उस कोयले के टुकड़े को बादशाह अकबर ने बीरबल को देते हुए उसे भी तीन दिन में उस कोयले के टुकड़े को दस हजार में बेचने को कहा.बीरबल ने अकबर बादशाह से उस कोयले के टुकड़े को लिया और उसे तीन दिन में दस हजार में बेच देने का वायदा करके चले गए.
बीरबल उस कोयले को टुकड़े को पीसा और फिर उसे एक छोटी सी हीरे जड़ित डिब्बे में रखा फिर
उस डिब्बे को उससे बड़ी सोने की डिब्बी में रखा और फिर उसे उससे भी बड़ी चांदी की डिब्बी में डाला इस प्रकार से उसने उसे अलग अलग सात धातुओं की डिबियों में बंद कर दिया और फिर उसके बाद उन्होंने एक पठान का भेष धारण करके बड़े बाज़ार में पहुंच कर मुनादी करवाई कि बगदाद से एक सुरमे वाला आया है जिसके पास एक ऐसा जादुई सुरमा हैं जिसको आंखों में डालने से मृत माता पिता या फिर पूर्वज दिखाई देते है.यह मुनादी सुनकर कई लोगों को जिज्ञासा हुई कि वह अपने मरे हुए परिजनों को देखे.
बीरबल के पास लोग आने लगे यहां बीरबल ने आंख में सुरमा डालने की कीमत पांच सौ रुपये रखे थे. जो भी आंख मेंसुरमा डलवाने आते तो बीरबल उनसे कहते कि अगर तुम अपने असली माँ पिता के सन्तान हो तो ही तुमको माँ – पिता दिखाई देंगे और जब आंख में सुरमा डलवाने के बावजूद उनको अपने माता पिता दिखाई नहीं दिया लेकिन सरेआम उनकी बेइज्जती नही हो इसीलिए वे कह देते की उनको अपने माता पिता दिखाई दिए.इस प्रकार से बीस लोगों की आंखों में बीरबल ने सुरमा डाला और ऐसा करते हुए दस हजार रुपये इकट्ठा कर लिया.
बीरबल अपना काम खत्म करने के बाद वे दरबार लौट आए और दस हज़ार रुपये बादशाह अकबर को सौप दिए. अकबर बादशाह जान चुके थे कि बीरबल ने वाकई कोयले के टुकड़े को बेचकर ही यह दस हजार रुपये इकट्ठा किए हैं क्योंकि बीरबल के पीछे उन्होंने अपने जासूस छोड़ा था. बादशाह अकबर ने अपने साले की ओर देखकर कहा ” देखो इसे कहा जाता हैं लगन अगर कुछ करने की तमन्ना हो तो कुछ भी असंभव नहीं होता है ”