Rishton Mein Apanaapan | समाज अपनों और रिश्तो से भरा है लेकिन कभी-कभी अपनों के बीच अहंकार आ जाने से रिश्तो में दूरियां आने लगती है या फिर अपनी बात नहीं मनवाने या नहीं समझने के बावजूद भी रिश्तों में खटाई आ जाती है जहां रिश्तो में अहंकार आ गया तो समझ लीजिए वहां रिश्ता खत्म ही हो गया उस रिश्ते में अपनापन नही रहता लेकिन कभी-कभी पराए के बीच अपनों जैसा रिश्ता बन जाता है जिससे कि उस पराए रिश्तों में अपनापन आ जाता है तो आज हिंदी महल… एक ऐसी कहानी लेकर आया है जहां अपनों के बीच अपनापन ना होकर पराए में अपनापन कायम हो गया.
आज मयंक बहुत ही चिंतित था क्योंकि उसकी पत्नी अनामिका का आखिरी महीना चल रहा था यह सोचकर वह बहुत चिंतित हो रहा था कि अकेले कैसे संभालेगा वैसे मयंक ने अनामिका की देखभाल के लिए सुबह 8 बजे से रात 9 बजे तक के लिए एक सेविका का इंतजाम कर दिया था पर ऐसे समय पर किसी अपनों का साथ रहने से मानसिक सुकून मिलता है उसे इस बात की पूरी उम्मीद थी कि यह खबर सुनकर उसकी मम्मी का सारा गुस्सा दूर हो जाएगा वह तुरंत ही दौड़ के आएगी आखिर पहला पोता या पोती है मम्मी के होते सब कुछ ठीक से हो जाएगा.
मम्मी और पूरे परिवार की नाराजगी कारण सिर्फ अनामिका थी जिससे मयंक ने सबकी इच्छा के विरोध शादी किया था. अनामिका के घर में उसका छोटा भाई और उसके पापा थे उसकी मम्मी बहुत साल पहले ही अनंत यात्रा को प्रस्थान कर चुकी थी यही कारण था कि मयंक को अपनी मां का ही सहारा था सोचा किसी कारणवश मम्मी नहीं आ पाई तो किसी तरह भाभी या बहन को बुला लेगा पर जो सोचा वह हो नहीं पाया. सबसे पहले मम्मी ने मयंक को घुटने के दर्द और पापा की देखभाल करने का बहाना बनाकर मना कर दिया इस पर मयंक ने अपनी मम्मी को कहा – मैं अकेले नहीं संभाल पाऊंगा मम्मी मुझे आपकी जरूरत है हो सके तो पापा को भी लेकर आओ मयंक के इस तरह के बातों पर मम्मी ने दो टूक जवाब देते हुए कहा कि “पापा को सफर में परेशानी होती है” जबकि मयंक जानता था कि उसकी मम्मी और पापा अपने कुछ मित्रों के साथ वैष्णो देवी मंदिर गए थे फिर भी वह चुप रहा अपनी चुप्पी तोड़ने के बाद मयंक ने अपनी मम्मी से सकुचाते हुए कहा “मम्मी अगर आप नहीं आ सकती तो दीदी या भाभी को ही भेज दीजिए” मयंक की इस बात को सुनकर मम्मी बोली- कैसी बातें कर रहे हो बेटा दीदी के ऊपर अपने परिवार की पूरी जिम्मेदारी है और भाभी कैसे आ सकती है उसके बिना यहां कौन संभालेगा. यह कहकर उसने फोन रख दिया.
अपनी मम्मी की इस तरह की बातें सुनकर मयंक की आंखें झलक उठी उसे याद आ गया यह वही मम्मी है जो उसकी हर इच्छा को पूरा करने के लिए हर समय दौड़ पड़ती थी यह देखकर अनामिका ने कहा चिंता मत कीजिए सब ठीक हो जाएगा की तभी कमरे के बाहर से सेविका जिसका नाम सीमा था की आवाज आई – आप दोनों अगर बुरा ना माने तो मैं आप लोगों की कुछ मदद कर सकती हूं सीमा की इस तरह की बातें को सुनकर अनामिका ने पूछा- कैसे ? तब सीमा ने बताया कि मेरी एक चाची है अकेली रहती है उसे हर तरह काम भी आता है आप चाहे तो मैं उसे आज बुला लूं. इस पर मयंक और अनामिका ने सकुचाते हुए कहा कि कहीं उसको कोई दिक्कत तो नहीं होगी. अपनों के लिए कैसी दिक्कत और पैसे की चिंता मत कीजिएगा इस समय तो मेमसाहब का ध्यान रखना जरूरी है सीमा ने अपनी बात रखी. सीमा की अपनेपन की बात सुनकर अनामिका ने कहा बहुत-बहुत धन्यवाद सीमा तुमने तो पराया होते भी अपनों से बढ़कर मेरा साथ देने का प्रयास किया है इस पर सीमा ने अपनी बात बढ़ाते हुए कहा कैसी बातें कर रही हो मेमसाहबआपके घर में कुछ दिनों में मुझे जो अपनापन मिला है उसके आगे तो यह कुछ भी नहीं है फिर इंसान ही तो इंसान के काम आता है आप सारी चिंता छोड़ दीजिए और खुश रहिए. अपनेपन की इस भाव को देखते हुए अनामिका ने सीमा को कहा कि आज से तुम मुझे मेमसाहब नहीं बल्कि दीदी कहना और मयंक को मयंक भैया.
अगले दिन सीमा की चाची आ गई और आते ही उसने सब कुछ बहुत ही अच्छे से संभाल लिया दोनों के कारण अनामिका को बहुत ही आराम होने लगा और मयंक को भी कोई चिंता नहीं रही समय पूरा होने पर अनामिका ने एक गोल मटोल से प्यारे से बेटे को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया प्रियल तब अनामिका और मयंक ने खुशी-खुशी सीमा को कपड़े और ₹2000 दिए और उसकी चाची को भी ₹5000 और कपड़े दिए. मयंक ने अपने घर पर प्रियल के जन्म होने पर कोई भी फोन नहीं किया क्योंकि वह जानता था कि कोई नहीं आएगा. प्रियल के एक साल होने तक सीमा और उसकी चाची ने अनामिका का अच्छे से ध्यान रखा और फिर सीमा को अपने घर काम करने के लिए पैसे ज्यादा देना चाहा पर सीमा ने मना कर दिया और उसकी चाची भी कभी-कभी उससे मिलने के लिए उसके घर आने लगी.
प्रियल के एक साल होने पर मयंक और अनामिका ने बहुत ही शानदार तरीके से उसका जन्मदिन मनाने को तय किया अनामिका के बहुत ही जोर देने पर मयंक ने अपने परिवार को भी बुलाया अनमने मन से वे आए तो जरूर लेकिन अजनबी की तरह शगुन का लिफाफा पकडा कर चले गए लेकिन सीमा और उसकी चाची और उसके परिवार ने अपनों की तरह पूरा साथ दिया इस तरह से एक पराई रिश्ते ने अपनेपन की सोंधी महक से अनामिका और मयंक के दिल में खास जगह बना ली. सच ही कहा है रिश्ता वही जिसमें अपनापन लगे ना की जरूरत होने पर वह दूर चले जाए.