Akbar-Birbal Ki Kahani | बादशाह को पहेलियों और कहानियों का बड़ा शौक था. उन्हें जब भी कोई नई पहेली या कहानी मालूम चलता, उन्हें अपने मंत्रियों के साथ साझा करते. और वे हमेशा अपने मंत्रियों और प्रजा को चुनौती देते कि वे उस पहेली को सुलझाए उन्हें लगता था कि कोई उसे नहीं सुलझा पाएगा और वे जीत जाएंगे. परंतु उन्हें बीरबल कभी जितने नहीं देते थे, उनके कठिन से कठिन पहेलियों को सुलझा देते थे.
तो चलिए आज के हिंदी महल के इस अंक में जानते हैं अकबर और बीरबल (Akbar Birbal ki Kahani) के बीच की एक रोचक कहानी जिसमें अकबर बीरबल से पूछते हैं एक पहेली. जिसका जवाब क्या थी वह पहेली? क्या बीरबल ने उसका दिया जवाब? (Akbar Birbal Stories) जानते हैं आगे.
Akbar-Birbal Ki Kahani | अकबर-बीरबल की कहानी – मनहूस कौन?
दिल्ली में देवीदास नाम का एक आदमी था जिसे सभी लोग मनहूस (Manhus) कहा करते थे क्योंकि उसके बारे में प्रचलित कहावत थी कि जो कोई उसका मुंह सुबह देख ले तो उसे दिन भर भोजन नसीब नहीं होता था. इस बात की जानकारी जब बादशाह अकबर तक पहुँची तो उन्होंने इस बात की सच्चाई को जानने के लिए तय किया कि वह भी सुबह उठते ही देवीदास का मुख को देखेंगे इसके लिए उन्होंने देवीदास को महल में बुलाया और उसकी खातिरदारी के लिए विश्राम गृह में ठहराया और अगले दिन सुबह उठते ही बादशाह अकबर के आदेशानुसार उनके सामने देवीदास खड़ा था. सच को परखने के लिए उन्होंने देवीदास को देखकर वापस भेज दिया फिर बादशाह अकबर उठे और अपने दैनिक कार्यों को निपटाने के बाद दरबार में आएं और राज दरबार के जिम्मेदारियों को सुलझाने लगे.
दोपहर के समय जब बादशाह अकबर भोजन करने बैठे तो उनको अपने भोजन की थाली में एक मरा हुआ कीड़ा दिखाई दिया जिसको देखकर उनका मन उचट गया और बिना भोजन किए ही लौट आए. उनके लिए फिर से दुबारा भोजन की व्यवस्था तो हुई लेकिन बहुत देर होने के कारण उनको दिन का भोजन नहीं मिल सका जिससे कि वे रात्रि में ही भोजन करके अपना पेट भर सकें. इस घटना को सोचने पर उनको विश्वास हो गया कि सचमुच देवीदास मनहूस हैं कि जो कोई भी उसका मुख सुबह सुबह देख लें तो उसको भोजन नसीब नही होता हैं इसलिए ऐसे मनहूस आदमी का जिंदा रहना उचित नहीं है, अतः उन्होंने सेनापति को आदेश दिया कि तुरंत देवीदास को फांसी पर लटका दिया जाए और सेनापति ने बादशाह अकबर के हुक्म को जल्लाद तक पहुंचा दिया.
जल्लादों ने बादशाह का आदेश का पालन करते हुए देवीदास को पकड़ लिया और फिर उसे फांसी पर चढ़ाने के लिए ले जाने लगे. इस बात की जानकारी जब बीरबल को मिली तो उसे बहुत ही दुःख हुआ और उन्होंने तय किया कि वह हर हाल में बेकसूर देवीदास को फांसी पर चढ़ने नहीं देंगे वह फौरन फांसी स्थल की तरफ चल दिए. जल्लाद देवीदास को फांसी स्थल तक ले जा रहे थे कि बीरबल ने उनको रास्ते में ही रोक लिया और देवीदास के कान में कुछ कहा और फिर वापस लौट आए.
जल्लाद ने देवीदास को फांसी पर चढ़ाने से पहले उसकी अंतिम इच्छा को पूछा तो देवीदास ने कहा कि – ” मैं लालकिले के बाहर चौक में सार्वजनिक रूप से कुछ कहना चाहता हूं. जल्लाद ने देवीदास की इस इच्छा को बादशाह अकबर के पास पहुंचा दिया तब देवीदास को बादशाह अकबर ने दरबार में बुलाकर कहा – “देवीदास तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी की जाएगी लेकिन तुम क्या कहना चाहते हो?”
तब देवीदास ने कहा – “हुजूर मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि मेरा मुख देखने से तो लोगों को केवल भोजन नहीं मिलता परन्तु बादशाह का मुख देखने से तो मृत्यु दण्ड ही मिलती हैं. क्योकि मैंने सबसे पहले सुबह सुबह आपका ही मुख देखा था “.
बादशाह अकबर समझ गए कि बीरबल ने ही देवीदास को यह पाठ पढ़ाया हैं जब उन्होंने बीरबल की ओर देखा तो वह मन्द मन्द मुस्कुरा रहे थे. बादशाह अकबर ने फिर देवीदास को रिहा कर के वापस भेज दिया और यह घोषणा किए की देवीदास का मुख सुबह देखने पर भोजन नहीं मिलना महज एक संयोग है इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है.